Mahatma Gandhi महात्मा गांधी ( राजनीति का आध्यात्मिकरण ) 1869 से 1948

गांधी जी की रचनाएं
गांधीजी ने प्रत्यक्ष रुप से बहुत कम पुस्तकें लिखी है और जो भी पुस्तकें लिखी हैं इनका सीधा विषय राजनीति नहीं है उनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध दो पुस्तकें हैं
1 हिंद स्वराज 
2 आत्मकथा अथवा सत्य के साथ मेरे प्रयोग इन ऑटो बायोग्राफी एंड माय एक्सपेरिमेंट विथ ट्रुथ
गांधी जी के सत्य संबंधी विचार
सत्य गांधी जी के संपूर्ण चिंतन की एक अति महत्वपूर्ण धारणा विचार है और यदि हम सत्य में ईश्वर एवं अहिंसा का निवास मामले जैसा कि गांधीजी का अनेक बार आग्रह है तो यह कहना उचित होगा कि सत्य गांधी जी के चिंतन का एकमात्र केंद्रीय विषय है अतः गांधी जी ने सत्य की धारणा पर विस्तार से विचार करते हुए इसके प्रकार जानने का उपाय तथा महत्व पर प्रकाश डाला है
1 सत्य का अर्थ सत्य शब्द की व्युत्पत्ति सत् धातु से हुई है जिसका जिसके प्रमुख अर्थ है
1। जिसकी सत्ता है 
2 जिसका अस्तित्व है 
3 स्वयं अपना प्रमाण है 
4 अनश्वर
5 सदगुण संपन्न
गांधी जी ने अपने संपूर्ण चिंतन में सत्य शब्द का प्रयोग इन सभी अर्थों में किया है यह उल्लेखनीय है कि सत्य के यह सभी लक्षण अपनी संपूर्णता के साथ ईश्वर में पाए जाते हैं और इसीलिए गांधी जी ने सत्य का एक प्रमुख अर्थ ईश्वर माना है और कहा है सत्य ही ईश्वर है उन्होंने सत्य की सृष्टि का कारण माना है उन्होंने सत्य को सृष्टि का कारण माना है संपूर्ण सृष्टि में सत्य की ही सत्य है सत्य पर व्यक्ति का लौकिक जीवन लिखा है यह मानवीय सिद्धांतों एवं नियमों का आधार है और यह अंतः करण की आवाज है गांधी जी ने सत्य को सभी गुणों का आश्रय माना है
2 सत्य के प्रकार एवं उनका पारस्परिक संबंध
1। सत्य के प्रकार गांधी जी ने सत्य के दो प्रकार स्वीकारें किए हैं स्वीकार किए हैं निरपेक्ष शाश्वत सत्य तथा सापेक्ष सके निरीक्षक के लक्षण है यह प्रमाण है यह सृष्टि का मूल अनश्वर तत्व एवं विचार है इसका आदि प्रारंभ तथा अंत नहीं है तथा यह सृष्टि की सभी अवस्थाओं प्रारंभ मध्य अंत का एकमात्र कारण है संक्षेप में इस निरपेक्ष सत्य कोई ईश्वर बताते हुए गांधी जी ने कहा है सत्य ही ईश्वर है सापेक्ष सत्य मानव के लौकिक जीवन से संबंधित सकते हैं अन्य तत्वों में यह मानव जीवन के सामाजिक राजनीतिक एवं आर्थिक जीवन से संबंधित सत्य है
2।दोनों शब्दों का पारस्परिक संबंध सापेक्ष और निरपेक्ष सत्य का एक अंग है व्यक्ति सापेक्ष सत्य का अनुसरण करके निरपेक्ष सत्यता कौन सकता है और यह समझ सकता है निरपेक्षता तक पहुंचाता है और यह समझ सकते हैं
3 सत्य को जानने की विधि गांधीजी के अनुसार मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य भ्रम अर्थात निरपेक्ष सत्य को जानना है किंतु पार्थिव शरीर में रहते हुए आत्मा के लिए यह संपूर्ण विपक्ष सत्य का ज्ञान संभव नहीं होता है क्योंकि सर शरीर आत्मा ज्ञान के लिए बुद्धि एवं इंद्रियों के साधन पर निर्भर होती है बस तू तो है सर शरीर आत्मा अल्पज्ञ सीमित ज्ञान वाली होती है जबकि निरपेक्ष सत्य अपनी प्रकृति से आलौकिक इंद्रियों में बुद्धि से परे तथा असीम होता है किंतु सर शरीर आत्मा उचित साधनों को अपनाकर निरपेक्ष सत्य का पर्याप्त अभ्यास प्राप्त कर सकती है मानव के लिए निरपेक्ष सत्य की तुलना में सापेक्ष सत्य का ज्ञान प्राप्त करना अधिक सरल है sapeksh Satya apni prakriti se सापेक्ष अ
सत्य अपनी प्रकृति से लौकिक एवं सीमित है और उसे इंद्रियों में बुद्धि की मदद से समझा जा सकता है यह उल्लेखनीय है कि अलौकिक सत्य को समझने में अहिंसा का साधन बहुत उपयोगी है गांधी जी का भी यह गांधी जी का यह भी मत है कि सापेक्ष सत्य की मदद से निरपेक्ष सत्य का उतना आभासी ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है जितना कि एक शव शरीर आत्मा के लिए संभव है जब मानव मन वाणी और कर्म से अलौकिक सत्य का पालन करता है तो उसकी आत्मिक शुद्धि होती है और उसे आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है आत्मज्ञान ही निरपेक्ष सत्य को समझने की कुंजी है
4 सत्य का महत्व गांधीजी ने संपूर्ण सृष्टि एवं मानव जीवन के प्रसंग में सत्य के महत्व को स्वीकारा है सत्य अपनी प्रकृति से 57 है जड़ चेतन सृष्टि का आदि कारण है और सत्य ही ईश्वर है गांधी जी का मत है कि मानव जीवन में सत्य का विशिष्ट महत्व है और इसीलिए मानव को सत्य परायण बनना चाहिए सत्य परायण व्यक्ति मन वाणी और कर्म से सत्य का पालन करता है जिससे उसे इन तीनों स्तरों पर सुचिता पवित्रता प्राप्त होती है और उसे आत्मज्ञान की प्राप्ति है जो आत्मसाक्षात्कार की अनुभूति में सहायक होती है गांधीजी ने लौकिक जीवन में सत्य के महत्व को बताते हुए कहा है कि सत्य का अनुसरण अनुसरण कर मानव जाति अपने कष्टों से मुक्ति पा सकती है सत्य धर्म में नीति का मूल है और उसकी मदद से मानव अपने अलौकिक जीवन के सभी पक्षों का आध्यात्मिक अरण्य मेथी की करण कर सकता है और इस प्रकार एक आदर्श सामाजिक राजनीतिक व्यवस्था की स्थापना में सफल हो सकता है गांधी जी ने सत्य का महत्व बताते हुए कहा है सत्य एक विशाल वृक्ष है उसकी जॉन जो सेवा की जाती है क्योंकि उसमें अनेक फल आते हुए दिखाई देते हैं

गांधीजी की अहिंसा की अवधारणा
यद्यपि गांधी जी ने सत्य के बाद तथा सत्य की अनुपूरक शक्ति के रूप में अहिंसा को अपने चिंतन में स्थान दिया है तो भी अहिंसा को उसके चिंतन की ऐसी प्रमुख विशेषता माना जाता है जिसके आधार पर गांधीवाद को विश्व की अन्य विचारधाराओं से अलग हुए स्वतंत्र पहचान प्राप्त हुई है गांधी जी ने अहिंसा को समस्त सृष्टि में व्याप्त एक सक्रिय व रचनात्मक आध्यात्मिक शक्ति माना है उनका मत है कि मानव अपनी प्रकृति से एक अहिंसक प्राणी है अहिंसा के नियम का पालन करते हुए ही मानव ने अपनी सभ्यता का विकास किया है और अहिंसा के पालन की क्षमता पर ही उसकी सभ्यता का भविष्य निर्भर करता है
1। अनुषा का अर्थ शब्दार्थ की दृष्टि से हिंसा का आशय नकारात्मक का भावात्मक है हिंसा का आधार और प्लस हिंसा गांधी जी ने हिंसा के इस नकारात्मक अर्थ को स्वीकारते हुए कहा है किसी को कभी नहीं मारना और ना किसी तरह सताना चाहता है अहिंसा के इस पक्ष एवं अर्थ को और अधिक स्पष्ट करते हुए कहा है पूर्ण अहिंसा का मतलब है प्राणी मात्र के प्रति दुर्भावना पूर्ण अभाव सामान्यता सामान्यता अहिंसा को एक नकारात्मक विचार के रूप में ग्रहण करने की परंपरा रही है किंतु गांधी जी की विशेषता यह है कि उन्होंने अहिंसा को सृष्टि की एक रचनात्मक सृजनात्मक शक्ति के रूप में भी स्वीकारा है और अहिंसा में नहीं सकारात्मक भावनात्मक अर्थ को प्रकट किया है इस दृष्टि से गांधी जी का यह कथन महत्वपूर्ण है प्रेम की पराकाष्ठा है गांधीजी ने नकारात्मक एवं सकारात्मक दोनों को स्वीकार स्वीकार है और इस प्रकार उन्होंने ऐसा के अर्थ को संपूर्णता प्रदान की है
2। Ahinsa ki prakriti Swaroop lakshan AVN visheshtaen अहिंसा की प्रकृति स्वरूप लक्षण एवं विशेषताएं गांधी जी के चिंतन में अहिंसा की प्रकृति के बारे में अगर लिखित चार मूल विचार दिखते हैं जो अहिंसा के आधारभूत लक्षणों एवं विशेषताओं पर भी प्रकाश डालते हैं आध्यात्मिक शक्ति के रूप में अन्य प्राणियों के बीच आध्यात्मिक एकता प्रेम करुणा सहयोग एवं सेवा की भावना उत्पन्न करती हैअहिंसा सत्य की खोज एवं प्राप्ति का साधन है गांधी जी ने अहिंसा को स्वयं ऐसा दे नहीं माना है अभी तो साथ दे तो सदैव सत्य है और उसकी प्राप्ति का एक अनिवार्य साधन अहिंसा है गांधीजी के शब्दों में बिना अहिंसा के सत्य की खोज नामुमकिन है अहिंसा व्यक्ति के साथ ही सामाजिक विषय है गांधी जी ने पूर्ण अहिंसा को एक व्यक्ति धर्म के रूप में स्वीकार किया स्वीकारा गया था किंतु उन्होंने इसे एक सामाजिक धर्म के रूप में भी प्रस्तुत किया है गांधी जी के शब्दों में मैं नहीं है विशेष दावा किया है यह सामाजिक चीज है लेकिन व्यक्ति चीज नहीं इस प्रकार गांधी जी ने हिंसा को अपनी प्रकृति से व्यक्ति के साथ ही समुदाय के उत्थान एवं कल्याण का साधन भी माना है हिंसा हिंसा पर विजय का आध्यात्मिक शास्त्र साधन है गांधी जी का मत है कि अपनी प्रकृति से शस्त्रों पर आधारित भौतिकवाद है और उस पर अहिंसा के आध्यात्मिक बल्कि जी उनका यह भी मत है उत्पीड़न शोषण और समानता के विभिन्न रूप हैं की मदद से विजय पाई जा सकती है उनके इस कथन से प्रकट होता है यदि 1 व्यक्तियों का समूह और दूसरी ओर का सिपाही अकेला ही हो तो भी वह शस्त्रों के सामने समर्पण नहीं करेगा वह कर देगा के मुकाबले संपूर्ण निष्प्रभावी और निष्फल होते हैं उन्होंने अजय आध्यात्मिक शस्त्र माना है
3। ऐसा करने सद्गुणों से संबंध सद्गुण और इस रूप में सत्य प्रेम दया आदि के सद्गुणों से इसका घनिष्ठ संबंध है गांधी जी ने सत्य विशेषता स्वीकारते हुए कहा है सत्य का संपूर्ण दर्शन अहिंसा के बिना अधूरा है वस्तुतः गांधी जी ने सत्य निष्ठा संबंध माना है कि उनका सामान यही है कि एक के बिना अधूरा नहीं होता है और आधारहीन हो जाती है किंतु अनुष्का के बावजूद सृष्टि सकरी आध्यात्मिक व नैतिक शक्ति के रूप में सत्य का स्थान प्रथम है और अहिंसा का द्वितीय गांधी जी के शब्दों में सत्य सत्य और अहिंसा साधन अन्यत्र उन्होंने कहा है सत्य और अहिंसा में चुनाव करना पड़ेगा को छोड़कर रखने में आगा पीछा नहीं करूंगा हिंसा का प्रेम दया जैसे सद्गुणों से भी संबंध है गांधीजी के अनुसार अहिंसा प्रेम की पराकाष्ठा है उन्होंने कहा है जहां दया नहीं है उसमें उतनी ही है उल्लेखनीय है कि गांधीजी ने अपनी अर्थव्यवस्था की योजना के प्रशन एवं अपने सद्गुणों के साथ हिंसा की घटनाओं को प्रकट किया है मानव स्वभाव और अहिंसा गांधी जी ने दर्शन अनुभव एवं इतिहास के आधार पर बताया है कि मानव रतन सा प्राणी है ईश्वर का अंश मौजूद है और इसीलिए वहां हिंसा की जीवन विरोधी प्रवृत्ति की प्रवृत्ति की तुलना में अहिंसा की जीवन रक्षक प्रवृत्ति को पसंद करता है अनुभव बताता है कि मानव काम क्रोध शादी के आवेगो से प्रभावित होकर हिंसक आचरण कर सकता है किंतु जैसे ही वह अपनी सहज अवस्था में लौटता है उसका अंतः करण तथा विवेक उसे अहिंसा को अपनाने के लिए प्रेरित करता है गांधी जी का कथन है अहिंसा हमारी प्रजाति का शाश्वत नियम है जबकि हिंसा पशुओं का नियम है पशुओं में आती रहती है और भौतिक शक्ति के अतिरिक्त और कुछ नहीं जानते व्यक्ति का शव एक व्यक्ति को एक नियम आत्मा के संघर्ष को मारने के लिए बाध्य करता है अहिंसा एक ऐसा आदर्श है जिसकी और व्यक्ति प्राकृतिक रूप से बिना इच्छा किए ही चलते हैं गांधी जी का मत है कि मानव समाज के विकास का इतिहास भी यही बताता है कि मानव की मूल प्रवृत्ति अहिंसा ही है अपनी इस प्रवृत्ति के कारण ही मानव नर भक्षण के दोष से मुक्ति की मुक्ति पाई है मांसाहार से शाकाहार की ओर बढ़ा है और शिकार के स्थान पर कृषि पर निर्भर हुआ है वस्तुतः नारम भिलाई संगठनों से लेकर वस्तुतः प्रारंभिक भिलाई संगठनों से लेकर आधुनिक अंतरराष्ट्रीय संगठनों तक मानव सभ्यता का जो विकास हुआ है उसके पीछे मानव भी हिंसक प्रवृत्ति ही सक्रिय रही है
अहिंसा के प्रकार संपूर्ण गांधीवादी चिंतन में हिंसा के निम्नलिखित प्रकारों का उल्लेख दीख पड़ता है निरपेक्ष अहिंसा के सापेक्ष अहिंसा नकारात्मक अहिंसा एवं सकारात्मक अहिंसा प्रयोग कर्ताओं के प्रसंग में हिंसा के प्रकार के दृश्य दृश्य दृष्टि के प्रति पूर्ण व्यवस्था का पूर्ण विकसित रूप है और इसका पालन भी ईश्वर द्वारा ही संभव है मानव द्वारा अपेक्षित है अपने समाज के अस्तित्व की रक्षा की दृष्टि से हिंसा करने को मजबूर हो सकता है किंतु उसे इस स्थिति में भी लगातार यही कोशिश करनी चाहिए की मात्रा कम से कम हो सकता है किंतु से इस स्थिति में भी लगातार कोशिश करनी चाहिए की मात्रा कम से कम हो सकता है क्योंकि जीवन के अस्तित्व की पूर्व शर्त है शर्त है मानव के लिए सापेक्षिक संभव दर्शन करते हुए जीवन व्यतीत करता है तो यह माना जाना चाहिए व्रत का पालन कर रहा है नकारात्मक नकारात्मक अहिंसा के नाम है सिद्धांत रूप में विश्वास करती है किंतु जीवन की रक्षा के लिए न्यूनतम हिंसा की मजबूरी है उल्लेखनीय है कि सापेक्षता के सिद्धांत कठोरता से पालन किया जाता है की रक्षा के लिए अपने जीवन की रक्षा के लिए अपने स्वास्थ्य की रक्षा के लिए स्थान पर अन्य उपायों को अपनाना पसंद करता है सकारात्मक अहिंसा पॉजिटिव है अथवा प्राणी मात्र के प्रति सक्रिय प्रेम की भावना है यहां से भी अधिक दूसरों को प्रेम करना यहां तक कि अपने विरोधियों के प्रति भी ऐसा ही भाव रखना वरना गांधी जी का कथन है वास्तविक प्रेम व्यक्तियों से प्रेम करना है जो तुमसे ना करते हो और अपने पड़ोसी से प्रेम करना है जिस पर तुम्हें भले ही विश्वास नहीं हो गांधी जी ने सकारात्मक अहिंसा को प्रेम की पराकाष्ठा माना है प्रयोग कर्ताओं के प्रसंग में हिंसा के प्रकार गांधी जी ने अहिंसा का पालन करने वाले व्यक्ति के आध्यात्मिक तथा मानसिक स्तर के संदर्भ में अहिंसा की थी निम्नलिखित अवस्थाएं प्रकार बताए हैं चार व्यक्तियों की जागृत व्यक्तियों की अहिंसा पूर्ण साथी प्रकृति के व्यक्ति मन वाणी और कर्म से अहिंसा के जिस रुप को अपनाते हैं उसे जागृत अहिंसा लाइट अहिंसा कहा जाता है जावेद अहिंसा का पालन आध्यात्मिक दृष्टि से पूर्ण जागृत ऐसे व्यक्ति द्वारा ही किया था द्वारा ही संभव है जिसका सृष्टि के आध्यात्मिक एवं नैतिक एकता में पूर्ण विश्वास हो ऐसा व्यक्ति हिंसा करने में असमर्थ होने पर भी उसे नहीं अपनाता है अभी तो उसे प्राणी मात्र के कल्याण के लिए स्वयं कष्ट उठाने में अथवा अपने प्राणों का बलिदान करने में आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति होती है जागरण पाया जाता है और अजय है यह विरोधी शत्रु के में भी प्रेम का संचार करती है और उसे मित्र बस कर देती है जागृत हिंसा में पहाड़ी लाने की शक्ति होती है और यह हिंसा की सर्वोत्तम श्रेणी है अहिंसा के अन्य नाम है अहिंसा नीति का निर्यात में दृष्टि से व्यक्तियों की आध्यात्मिकता के बारे में विचार करत हैं
 और लाभ की दृष्टि से विचार करते हैं ऐसे व्यक्ति का विरोध करने में असमर्थ है तो एक के रूप में मानते हैं उनके प्रति प्रेमभाव नहीं होता है उसके लिए aur आई 0 और उनके लिए अहिंसा का अर्थ होता है शत्रु के प्रति बहुत ही खींचा रही तो देश की नीति इसीलिए मैं रही तो देश की नीति इसीलिए हिंसा को निष्क्रिय प्रतिरोध पैसिव रेजिस्टेंस के रूप में अपना आते हैं आध्यात्मिक दृष्टि से कमजोर होने के कारण स्थिति पूर्णतया के सामान अजय नहीं होती है तो भी वह जब इसका दृढ़ता से पालन किया जाता है तो यह बड़ी मात्रा में भौतिक लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक सिद्ध होती है हिंसा की मध्यम श्रेणी है कायरों की हिंसा की प्रवृत्ति के व्यक्ति है जो आध्यात्मिक चेतना से सुने और मानसिक दृष्टि से भयभीत रहने वाले होते हैं कायर व्यक्ति व्यक्ति के विरुद्ध करना चाहता है कि नहीं होता है इसके प्रकाशन करने को मजबूर हो जाता है मजबूर होता है या नहीं होता है नहीं कहा जा सकता है कि कहां है पता है जो इससे भी बुरी है कारों की हिंसा को बताते हुए उन्होंने कहा है कायरता की अपेक्षा बहादुरी के साथ हिंसा का प्रयोग करना है हिंसा का प्रयोग करना कहीं सुरेश कर है

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